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परिचय

एक महान आत्मा का अवतरण इस ग्रह पर दि. २ मार्च १९१९ ईस्वी में मुंबई में स्थित पारसी परिवार में हुआ। उनको नाम दिया गया सोली और उनके परिवार का उपनाम तावरिया था।

बचपन में वो इतने शरारती थे कि उनके माता-पिता ने उन्हे आवासीय विद्यालय में भेजने का निर्णय लिया, वहां उनकी शिक्षा-दीक्षा पूर्ण हुई। उनके कथनानुसार वहां ही उन्हें अपने महान गुरु का सानिध्य प्राप्त हुआ। अपने गुरु के माध्यम से ही उन्हें लय, ताल अथॉत् यौगिक रिदम का ज्ञान प्राप्त हुआ। साथ ही साथ शास्त्रों का भी ज्ञान प्राप्त हुआ। पांच वर्ष की अवस्था में एक दिन अनायास गायत्री मंत्र का उच्चारण शुरू हुआ और उन्होंने महसूस किया कि सर्वशक्तिमान परम तत्व का विशेष आशीर्वाद उन पर उतरा है।

यह बच्चा जो अध्यात्मिक शक्तियों से परिपूर्ण होकर आया था वह लोगों का भविष्य भी देख सकता था। एक बार एक व्यक्ति विद्यालय के प्राध्यापक के पास बैठा था और वह बालक भी वही उपस्थित था और वह व्यक्ति अपने बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में चर्चा कर रहा था तभी उस बालक ने सुना और कहा कहा कि वह अब जीवित नहीं रहेगा और ऐसा ही घटित भी हुआ। ऐसी ही भविष्यवाणी का क्रम जीवन भर चलता रहा। कई बार व्यंग स्वरूप में कहते थे कि मैंने रंगीन टीवी को निगल लिया है इसीलिए सभी जीवों के बारे में ज्ञात हो जाता है।

श्री तावरिया जी कई जन्मों से महर्षि पतंजलि की परंपरा से साधना करते आ रहे थे तभी अपनी योग की शुरुआत ७ साल की अवस्था में ही शुरू हो गई। उन्होंने अपने विद्यालय की शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग की शिक्षा भी प्राप्त की। उन्होंने दो शाखाओं में इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा पूर्ण की थी और २ विषयों में उन्होंने एम. ए. तक की भी शिक्षा ली थी। स्वर-नाडी के शास्त्र के साथ ही साथ होमियोपैथी चिकित्सा में भी उनकी गहरी रुचि थी। तत्पश्चात अपना कार्यभार मुंबई पोर्ट से शुरू कर के वाईस प्रेसिडेंट पद तक की ऊंची चोटी पर पहुंचे। १०००० मजदूरों के साथ उन्होंने अपना कार्यभार संभाला।

वहा के ज्यादातर मजदूरों का चरित्र बिगड़ा हुआ था, परंतु उन्होंने किसी को भी सुधारने के उद्देश्य से कोई उपदेश नहीं दिया परंतु उनके आध्यात्मिक शक्ति के तरंगों के प्रभाव से वे सब अपनी बुरी आदतों को छोड़कर अच्छे इंसान में परिवर्तित हो गए। वे शादी के बंधन में नहीं बनना चाहते थे परंतु अपने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य करके गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। अपना पवित्र दायित्व को पूरा करते हुए दो बच्चों के पिता बने। अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने व्यवसाय शुरू किया परंतु साझेदार के धोखाधड़ी के कारण व्यवसाय में बहुत बड़ा नुकसान हुआ। उनका तपस्वी व्यक्तित्व ने जीवन के किसी भी नुकसान से अध्यात्मिक साधना में समझौता नहीं होने दिया।

१९८१ ईस्वी से उन्होंने मुंबई के एक छोटे से समूह में इस योग-शिक्षा पर व्याख्यान शुरू किए और १९९४ तक जब तक वे जीवित रहे, देते रहे। बहुत ही बड़ी मात्रा में योग -विधि (प्रणाली) पर उनके व्याख्यान ( Discourses On Yoga part I to IIl ) को प्रकाशित किया गया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने आत्मा की प्रथम जन्म से लेकर अंतिम जन्म – मोक्ष तक की यात्रा का वर्णन महान और वृहद ग्रंथ (४१५ पृष्टों वाला) “जीवन और मृत्यु का उद्देश्य” (“The Purpose of Birth and Death”) में किया है। उनका उत्कृष्ट कार्य योगसूत्र के १९५ सूत्रों को ५ किताबों में पुनः ग्रथित करना है। ईस संबंधित अभ्यास को उन्होंने पहले अनुभव किया फिर प्रतिपादित किया (So he said it -Exposition & practices).

श्री तावरिया जी योग के प्रचारक नहीं थे अतः वे मुंबई से बाहर नहीं जाते थे। लेकिन वे सिर्फ दो बार मैसूर ब्रीडिंग एक्सरसाइज सिखाने गए थे। तत्पश्चात उनकी योगशिक्षा की यात्रा गुजरात के माधवपुर से शुरू हुई। इनकी योगशिक्षा सरल एवं प्रकृति के लय (Rhythm)पर आधारित है। इन्होंने बहुत ही पुरातन विधियां या तकनीक को ताल और लय के साथ स्थापित किया जिसका नाम थ्री स्टेप रिदामिक ब्रीडिंग (Three Step Rhythmic Breathing) रखा है। अगर कोई व्यक्ति में १ मिनट में १२ श्वास की गति, वह भी स्वाभाविक रूप से २४ घंटे चलती रहे तो मन शांत हो जाता है और व्यक्ति आगे का योगाभ्यास असानी से कर सकता है। प्रत्याहार तक पहुंचने के लिए यह महत्वपूर्ण तकनीकी अभ्यास है। हालांकि उन्होंने १ मिनट में ३६ स्वास का आवर्तन से की जाने वाली ६ कसरतें को प्रस्तुत किया है जिसे शरीर मन की शुद्धिकरण की प्रक्रिया (Refining exercises) नाम दिया है। एक अध्यात्मिक अभ्यास जिसे उन्होंने गोल्ड नगेट की संज्ञा दी है। उनके अनुसार ७ मिनटों की यौगिक प्रक्रिया अगर रोज की जाए तो यह संसार की सबसे छोटी अवधि का योगाभ्यास की श्रेणी में है और उनका दावा था कि इसके जरिए संपूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त किया जा सकता है। उनके संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह कहा करते थे कि वह मैं जो अनुभव करता हूं उतना ही मुझे कहने का अधिकार प्राप्त है। श्री तावरिया जी ने अपने शरीर के जैविकीय रचना को इस तरह विकसित किया था कि वे २ दिनों के अंतराल में ही भोजन किया करते थे। ४ घंटे की नींद, ४८ घंटे के पश्चात भोजन फिर भी वह पूरे दिन ऊर्जावान बने रहते थे। ७६ वर्ष की आयु तक असमान्य स्वास्थ्य के धनी रहे।

प्रत्येक वर्ष मई के महीने में वह सांगली (महाराष्ट्र) जाया करते थे जहां पर शतरंज की राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता आयोजित की जाती थी। वहां वह प्रतियोगियों को उत्साहित करते क्योंकि वो स्वयं अच्छे शतरंज के खिलाड़ी थे। इसी मई महीने के १९९४ ईस्वी के २९ को उन्होंने अपने इस भौतिक शरीर का स्वेच्छा से त्याग किया। इस संदर्भ में वो लगातार कहा करते थे कि अब मेरे पास बहुत कम समय बचा है, जिसे जो भी सीखना है आओ और सीखो। 

योग के माध्यम से जागृति के साथ जन्म और मृत्यु को प्राप्त किया जा सकता है वह उन्होंने कर दिखाया। जागृत या सचेतन मृत्यु का अर्थ है कि योगी उस शरीर को जागरूकता और सचेतनता के साथ छोड़ता है। अगर वह बेहोश या अचेतन हो जाता है तो इसका अर्थ है कि वह सच्चा योगी नहीं है। मतलब वह जागरूकता के साथ जानता है कि मृत्यु के पश्चात वह कहा जा रहा है जो सामान्य इंसान नहीं समझ सकता।
यही एक महान आत्मा की संक्षिप्त कहानी है। उनका शीषॅवाक्य है,

हर श्वास के साथ प्रेमभाव,
हर उच्छश्वास के साथ क्षमाभाव।

(Breathe in love, breathe out forgiveness)